हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर अकेले सरकार बनाने का कॉन्फिडेंस दिखा रही कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से गठबंधन की बात कर सबको चौंका दिया। सबसे अहम बात ये कि इसकी पहल लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने की।
राहुल गांधी ने आप से बातचीत के लिए 4 मेंबरों की कमेटी बना दी है। जिसमें पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल के अलावा पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया और प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान को भी रखा गया है। ये कमेटी सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत करेगी।
सूत्रों के मुताबिक आम आदमी पार्टी 10 सीटें मांग रही है। वहीं कांग्रेस ने 7 सीटों का ऑफर दिया है। ने तर्क दिया है कि लोकसभा में उन्हें एक सीट मिली थी, जिसमें 9 विधानसभाएं थीं। ऐसे में उनका 10 सीटों का दावा मजबूत है।
पार्टी का कहना है कि कांग्रेस नेताओं के साथ कुछ राउंड की बातचीत हुई है। आज भी कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की मीटिंग होगी। ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन पर आखिरी फैसला अरविंद केजरीवाल लेंगे।
वहीं गठबंधन की पहल से हरियाणा में कांग्रेस के लिहाज से राहुल गांधी ने 3 बड़े मैसेज दिए हैं।
पहला मैसेज पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा के लिए है कि अपने स्तर पर अकेले चुनाव लड़ने की बात कहकर वह खुद को कांग्रेस से बड़ा नेता न समझें।
दूसरा भाजपा की गैर जाट पॉलिटिक्स का भी तोड़ में निकाला कि कांग्रेस भी अकेले जाट वोट बैंक पर निर्भर नहीं रहेगी।
तीसरा एंटी इनकंबेंसी से मिलने वाले वोटों का आम आदमी पार्टी के साथ बिखराव रोकने की कोशिश की है।

हरियाणा में कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा और सांसद कुमारी सैलजा-रणदीप सुरजेवाला के 2 गुट हैं। संगठन पर अभी हुड्डा की पकड़ है। प्रधान चौधरी उदयभान भी हुड्डा के करीबी हैं। हुड्डा लगातार कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की पैरवी करते रहे। उन्होंने लोकसभा चुनाव के वक्त भी कहा कि विधानसभा में से गठबंधन नहीं होगा।
हुड्डा के हाईकमान को इग्नोर कर सीधे दावे करने के बाद राहुल गांधी का गठबंधन की तरफ बढ़ना उनके लिए बड़ा झटका है। यह भी मैसेज दिया गया कि हुड्डा खुद को हरियाणा कांग्रेस न समझें बल्कि पार्टी उनसे ऊपर है। यह भी माना जा रहा है कि पिछले दिनों कुमारी सैलजा के CM पद पर दावा ठोकना भी हुड्डा को झटका देने की रणनीति का ही हिस्सा है।
खास बात यह है कि सैलजा जहां उनके चुनाव लड़ने से लेकर सीएम चुनने तक का फैसला हाईकमान पर छोड़ती रही हैं, वहीं हुड्डा अपने स्तर पर किसी भी पार्टी से गठबंधन की बात को नकारते आ रहे हैं।भाजपा 10 साल से प्रदेश में सरकार चला रही है। ऐसे में सत्ता के प्रति एक स्वाभाविक एंटी इनकंबेंसी नजर आ रही है। अगर कांग्रेस और अलग-अलग लड़ते हैं तो वोटों का बिखराव होना तय है। खास तौर पर पंजाब में कांग्रेस के प्रति एंटी इनकंबेंसी का सीधा फायदा को पहुंचा। आप ने वहां 117 में से 92 सीटें जीत ली। कांग्रेस 18 पर सिमट गई। सत्ता के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के वोट का विकल्प आप बनी तो कांग्रेस को नुकसान होना तय है। ऐसे में राहुल गांधी गठबंधन से इसे भी रोकना चाहते हैं।
हरियाणा में भाजपा गैर जाट पालिटिक्स करती है। 10 साल में पहले पंजाबी CM मनोहर लाल खट्टर और अब लोकसभा चुनाव से पहले OBC चेहरे नायब सैनी को सीएम बना दिया। भाजपा इस चुनाव में भी गैर जाट वोट बैंक के लिए ग्राउंड लेवल पर रणनीति बना रही है। इसके उलट कांग्रेस की पॉलिटिक्स जाट वोट बैंक पर निर्भर है। हुड्डा हरियाणा में सबसे बड़े जाट चेहरे हैं। हालांकि जाट वोट बैंक भी एकमुश्त कांग्रेस को मिले, यह भी संभव नहीं है।
इसमें पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी और अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल की सेंधमारी होगी। दूसरा कांग्रेस को SC वोट बैंक से उम्मीद है लेकिन उसमें भी इनेलो के बसपा और के चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन के बाद सेंध लग सकती है। ऐसी सूरत में कांग्रेस आप को साथ लेकर उनके पक्ष के वोट बैंक को साधना चाहती है।
हरियाणा में गठबंधन से राहुल गांधी की नजर फ्यूचर पॉलिटिक्स पर है। वह इसके जरिए I.N.D.I.A. ब्लॉक में शामिल उन छोटे-बड़े दलों को भरोसा देना चाहते हैं जिनमें कांग्रेस के प्रति भरोसे की कमी है। राहुल इससे सहयोगी दलों में कांग्रेस के साथ के प्रति भरोसा बढ़ाना चाहते हैं। इसके जरिए राहुल दूसरे राज्यों के दलों को भी मैसेज देना चाहते हैं। वहीं यह भी बताना चाहते हैं कि भले ही हरियाणा में 10 साल से सरकार चला रही BJP के प्रति एंटी इनकंबेंसी से कांग्रेस मजबूत होने का दावा कर रही है लेकिन वह कमजोर दलों का साथ नहीं छोड़ रही। मध्यप्रदेश चुनाव में कांग्रेस पर इसको लेकर आरोप भी लगे थे कि सपा के साथ आखिरी वक्त तक बातचीत कर भी गठबंधन नहीं किया गया।
हरियाणा के जरिए राहुल गांधी अगले साल 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव को भी साधना चाहते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहते 1998 से लेकर 2013 तक सरकार बनाई। इसके बाद 2013 और 2015 में हुए चुनाव में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई। इस बार कांग्रेस हरियाणा में आप को साथ लेकर दिल्ली में उनके साथ गठबंधन को लेकर दबाव बना सकती है।चंडीगढ़ नगर निगम के 35 वार्डों के लिए इसी साल मार्च महीने में चुनाव हुआ था। इसका चुनाव तो AAP और कांग्रेस ने अलग-अलग लड़ा। जिसमें AAP के 13 पार्षद और कांग्रेस के 7 पार्षद जीत गए। भाजपा के 14 और एक पार्षद अकाली दल का बना। मेयर के लिए सबसे बड़ी पार्टी भाजपा बनी। हालांकि I.N.D.I.A. ब्लॉक के तहत आप-कांग्रेस ने मेयर चुनाव में गठबंधन कर लिया। जिसके बाद यहां कुलदीप कुमार आम आदमी पार्टी (AAP) के मेयर चुने गए। देश भर में I.N.D.I.A. ब्लॉक के आपस में मिलकर लड़ने और भाजपा को हराने का यह पहला चुनाव था। चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर 2014 और 2019 में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। दोनों बार दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की हार हुई और भाजपा जीत गई। 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार 1,21,720 यानी 26.84% वोट मिले थे। वहीं AAP की गुल पनाग को 1,08,679 यानी 23.97% वोट मिले थे। मगर, इस सीट पर 191,362 यानी 42.20% वोट पाने वाली भाजपा की किरण खेर जीती। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पवन बंसल को 1,84,218 यानी 40.35% वोट मिले। वहीं AAP उम्मीदवार हरमोहन धवन को 13,781 यानी सिर्फ 3.82% वोट मिले। कांग्रेस यह चुनाव भी हार गई। इसमें भाजपा की किरण खेर को 231,188 यानी 50.64% वोट मिले। इसके बाद 2024 में AAP ने कांग्रेस को सपोर्ट किया। जिसमें कांग्रेस के मनीष तिवारी 216,657 यानी 48.22% वोट पाकर जीत गए। उनसे हारे भाजपा उम्मीदवार संजय टंडन को 214,153 यानी 47.67% वोट मिले। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 2014 के मुकाबले 21.38% और 2019 के मुकाबले 7.87% बढ़ गया था